सावन का महीना चल रहा है और इस महीने में भगवान शिव जी के भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं।
दरअसल, यह कांवड़ शब्द ‘काँवर’ है, जिसका अर्थ होता है बाँस का एक फट्टा जिसे कन्धे पर रखकर तथा उसके दोनों सिरों पर बँधी पिटारियों या बर्तन में गंगा जल भरकर तीर्थयात्रा करते हैं। इस यात्रा में भाग लेने वाले भक्तों को ‘कांँवरिया’ कहा जाता है।
आज हम आपको इस कांवड़ यात्रा से related कुछ interested facts बताने जा रहे हैं।
कांवड़ यात्रा का महत्व
वेद – पुराणों के अनुसार कांवड़ यात्रा भगवान शिव जी को प्रसन्न करने का सबसे आसान तथा सहज माध्यम है। भगवान शिव जी के भक्त बाँस की लकड़ी पर दोनों तरफ़ लगी हुई टोकरियों में गंगा गंगाजल भरकर लाते हैं। कांवड़ को अपने कंधे पर रखकर लगातार यात्रा की जाती है तथा अपने स्थान के शिव मन्दिरों में जाकर जलाभिषेक किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि कांवड़ यात्रा करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा उसे अपनी ज़िन्दगी में किसी भी कष्ट का सामना नहीं करना पड़ता। इसी के साथ ही घर में धन आदि की कभी भी कोई कमी नहीं होती एवं अश्वमेध यज्ञ के समान ही इस यात्रा का फल मिलता है।
कांवड़ यात्रा के नियम
कांवड़ यात्रा के कुछ अहम नियम हैं लेकिन अक्सर कांवड़ियों द्वारा इन नियमों को तोड़ते हुए देखा गया है। इस यात्रा के दौरान किसी भी तरह के नशे, मदिरा, माँस आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
इस कांवड़ यात्रा को पूरी तरह से पैदल तय किया जाता है। यात्रा शुरू होने से लेकर ख़त्म होने तक का सफ़र पैदल ही तय किया जाता है। इस यात्रा में वाहन का प्रयोग करना वर्जित है।
कांवड़ में गंगा या किसी पवित्र नदी के जल को ही भरकर ले जाया जाता है। अक्सर स्नान करने के बाद ही कांवड़ को छूना चाहिए।
कांवड़ यात्रा के समय पूरी यात्रा भर में ‘जय जय शिव शंकर’ या ‘बम बम भोले’ के जयकारे लगाते हुए जाना चाहिए।
कांवड़ के प्रकार
सामान्य कांवड़
सामान्य कांवड़ यात्रा करते हुए भक्त रास्ते में आराम कर सकते हैं। कांवड़ियों के लिए जगह – जगह पर पंडाल लगाए जाते हैं, वहां वह अपनी कांवड़ रखकर विश्राम कर सकते हैं।
डाक कांवड़
डाक कांवड़ यात्रा के समय यह डाक कांवड़िए बिना रुके निरन्तर चलते रहते हैं। जिधर से गंगाजल भरा हो तथा जहाँ पर जलाभिषेक किया जाना हो, उधर तक उन्हें निरन्तर चलते रहना चाहिए। मन्दिरों में डाक कांवड़ियों के लिए अलग से इंतजाम किए होते हैं ताकि जब भी कोई डाक कांवड़िया आए वह बिना रुके शिवलिंग तक पहुँच जाए।
खड़ी कांवड़
खड़ी कांवड़ के समय कांवड़िए की सहायता के लिए उनके साथ कोई ना कोई ज़रूर होता है ताकि जब वह आराम कर रहे हों, तब उनका साथी अपने कंधों पर कांवड़ को लेकर चलता रहे अथवा कांवड़ को चलाने के अंदाज़ में हिलाता रहे।
दांडी कांवड़
यदि कोई सबसे कठिन कांवड़ है तो वह है – दांडी कांवड़। इस यात्रा को पूरा करने करने में लगभग एक महीने तक का समय लग जाता है। दांडी कांवड़ के कांवड़िए गंगातट से लेकर शिव मन्दिर तक दंडौती देते हुए अर्थात् लेट लेटकर यात्रा को पूरा करते हैं।